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दीपावली, जो "रोशनी का त्योहार" कहलाता है, हर साल आध्यात्मिक शक्ति, धन, समृद्धि, और उल्लास का प्रतीक है। इस साल, दीवाली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस विशेष दिन पर लक्ष्मी जी, गणेश जी और कुलदेवता की पूजा का विशेष महत्व है, जो समृद्धि, सुख और सभी प्रकार के आशीर्वादों का आह्वान करते हैं।

महत्वपूर्ण तिथियाँ और मुहूर्त
  • धनतेरस (29 अक्टूबर): त्रयोदशी का आरंभ सुबह 11 बजे से शुरू होकर 30 अक्टूबर को दोपहर 1:10 बजे तक रहेगा। इस दिन भौम प्रदोष, धन्वंतरि जयंती, और मास की शिवरात्रि का योग भी है।
  • नरक चतुर्दशी (30 अक्टूबर): 30 अक्टूबर को 1:10 बजे से शुरू होकर 31 अक्टूबर की दोपहर 3:12 बजे तक रहेगी। इसे छोटी दीपावली और कामेश्वरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
  • दीवाली (31 अक्टूबर): चतुर्दशी तिथि 31 अक्टूबर को दिन में 3:12 बजे तक रहेगी, इसके बाद अमावस्या प्रारंभ होगी, जो 1 नवंबर की शाम 5:15 बजे तक चलेगी।
    
पूजा का समय:
लक्ष्मी पूजन और काली पूजा के लिए 31 अक्टूबर की रात, चित्रा नक्षत्र के अंतर्गत, पूजा करने का विशेष महत्व है।

दीवाली पूजा विधि

दीवाली के अनुष्ठान के दौरान कुछ प्रमुख देवताओं और कुलदेवता का पूजन किया जाता है। यहाँ दीवाली पूजा के प्रमुख चरणों का वर्णन है:

चरण 1: साफ-सफाई और तैयारी

घर की साफ-सफाई करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल लक्ष्मी जी का स्वागत करने के लिए आवश्यक है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में भी सहायक होता है। पूजा स्थल को दीयों, फूलों, धूप, अगरबत्ती, और अन्य सामग्री से सजाएं।

चरण 2: लक्ष्मी पूजा
  1. लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  2. उनके सामने दीपक जलाएं और धूप- अगरबत्ती अर्पित करें।
  3. लक्ष्मी जी को ताजे फूल, मिठाई, और फलों से प्रसाद अर्पित करें।
  4. लक्ष्मी मंत्र "ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः" का जाप करते हुए उनके प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करें।
चरण 3: गणेश पूजा
  1. गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और दीपक जलाकर धूप- अगरबत्ती अर्पित करें।
  2. गणेश जी को फल, फूल, और मिठाई अर्पित करें।
  3. गणेश मंत्र "ॐ श्री गणेशाय नमः" का जाप करें, ताकि सभी बाधाओं का नाश हो और पूजा के फल में वृद्धि हो।
चरण 4: कुलदेवता पूजा
  1. कुलदेवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उन्हें दीपक और धूप अर्पित करें।
  2. कुलदेवता को भक्ति और श्रद्धा से फल, फूल, और मिठाई चढ़ाएं।
  3. कुलदेवता मंत्र का जाप कर अपनी भक्ति प्रकट करें, ताकि घर के समस्त सदस्य सुखी और स्वस्थ रहें।
चरण 5: आरती और समापन

पूजन के समापन पर लक्ष्मी जी, गणेश जी और कुलदेवता की आरती करें। इस पवित्र अनुष्ठान को पूरा करने के बाद परिवार के सदस्यों के साथ मिठाई और उपहार बांटें, जो सभी के बीच प्रेम और उल्लास बढ़ाता है।

लक्ष्मी पूजन के लाभ
  • देवी लक्ष्मी की कृपा से धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • घर में सुख और शांति का वास होता है।
  • सभी कार्यों में सफलता और उन्नति मिलती है।

विशेष परंपरा: तेल का दीपक

धनतेरस के दिन भौम प्रदोष और मास शिवरात्रि के दौरान सरसों या कंरज तेल का चौमुखी दीपक रात के पहले प्रहर में घर के दक्षिण दिशा में जलाने का विशेष महत्व है। इस परंपरा को निभाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

दीवाली का यह पर्व अपने जीवन में नए संकल्प, नई ऊर्जा, और नई उम्मीदें लेकर आता है। इस पर्व पर अपने परिवार और प्रियजनों के साथ समृद्धि और खुशियों का आदान-प्रदान करें, और देवी लक्ष्मी की कृपा से अपने जीवन में सफलता और समृद्धि का स्वागत करें।

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ!