यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन और सभ्यता की नींव का प्रतीक है। सूर्यदेव जीवन और ऊर्जा के स्रोत माने गए हैं, और उनका आशीर्वाद हमारे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य तथा पारिवारिक सुख-शांति के लिए आवश्यक है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देकर हम अपने जीवन को शुद्ध करने, सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। छठी मैया की कृपा से हम हर कठिनाई से मुक्त होते हैं, और हमारे परिवार में सुख-शांति का संचार होता है।
छठ पूजा का व्रत आसान नहीं होता; यह संकल्प और तपस्या की कसौटी है। चार दिनों का यह व्रत शारीरिक और आत्मिक शक्ति का प्रतीक है। नहाय-खाय, खरना, और संध्या व प्रातःकालीन अर्घ्य – हर दिन व्रती की आस्था और निष्ठा की परीक्षा होती है। यह कठिन तपस्या हमें संयम और आत्म-शुद्धि की ओर प्रेरित करती है।
छठ पूजा हमें प्रकृति के प्रति हमारे दायित्व की याद दिलाती है। पूजा सामग्री में केवल प्राकृतिक चीज़ों का उपयोग होता है, जैसे मिट्टी के दीए, बांस के सूप, ताजे फल, गन्ना, नारियल, जो प्रकृति से जुड़े हमारे प्रेम को दर्शाते हैं। इस दौरान हम अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर पूजा करते हैं, जो सामुदायिक भावना और एकता को प्रकट करता है। यह पर्व हमें आपसी प्रेम, सहयोग, और भाईचारे का संदेश देता है।
छठ पूजा के दौरान जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने का अनुभव शब्दों से परे है। सूर्य की लालिमा का अनुभव करना, जल में उनकी किरणों का प्रतिबिंब देखना, और भक्तिभाव से अर्घ्य अर्पित करना मानो जीवन को नई रोशनी से भरना है। यह क्षण जीवन के सभी नकारात्मक भावों को दूर कर हमारी आत्मा को आशीर्वाद से परिपूर्ण कर देता है। सूर्यदेव और छठी मैया की कृपा से हम आंतरिक शांति और संतोष की अनुभूति करते हैं।
बिहारियों और यूपी वालों की विशेष आस्था
अधिकतर यह देखने को मिलता है कि जब बिहार के लोग छठ पूजा के पावन पर्व के आगमन पर छठ पूजा के गीत सुनते हैं, तो वे अपने घर की ओर लौटने लगते हैं। भले ही वे साल भर प्रवास में रहते हों, लेकिन छठ पूजा के समय अपने घर आकर छठी मैया का आशीर्वाद लेना उनकी परंपरा बन गई है। यह पर्व उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ता है और परिवार तथा समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराता है।